भारतीय संस्कृति : लोक संस्कृति के विविध आयाम
भारतीय संस्कृति : लोक संस्कृतिके विविध आयाम
भारतीय संस्कृति का नाम विश्व की अनेक प्राचीनतम संस्कृतियों में लियाजाता है ।मिस्त्र ,यूनान, रोम की प्राचीनतम खोजों से जो सामग्री आजहमें प्राप्त हुई है वह भारतीय संस्कृति की प्राचीनता का घोतक है ।भारतीय संस्कृति में “ वसुधैव कुटुम्बकम “ की भावना समाहित है।
भारत में अनेक जनजातियाँ आई और यहाँ की संस्कृति में विलीन हो गई।भारतीय संस्कृति की विशेषता है अनेकता में एकता के दर्शन ,जब हमभारत के विभिन्न प्रांतों के भ्रमण लिए निकलते हैं तो हमें यहाँ की विभिन्नसंस्कृतियों में भिन्नता होते हुए भी ‘अनेकता में एकता ‘के दर्शन होते हैं।यहाँ पर अनेक धर्म ,जाति ,संप्रदाय के लोग निवास करते हैं लेकिनसांप्रदायिक सद्भाव की भावना लोगों में कूट -कूट कर भरी हुई है ।
भारतीय लोकसंस्कृति में निहित पर्व ,उत्सव ,व्रत त्योहार रीति रिवाज़,कलाएँ,लोकगीत ,लोकोक्ति मुहावरें ,भोजन,व्यंजन ,रहन -सहन ,आवास- प्रवास ,पति -पत्नी संबंध,पहनावा ,आभूषण,बोलचाल,व्यवहार आदि येसभी भारतीय लोक परम्पराओं और यहॉ की संस्कृति का अभिन्न अंग हैं। प्रत्येक क्षेत्र की कुछ अपनी विशेष लोक परंपराएँ एवं लोक संस्कृतिहोती है ।लोक संस्कृति या परम्पराएँ पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होतीरहती है और इनमें समयानुकूल थोड़ा बहुत परिवर्तन भी होता रहता ।प्रत्येक क्षेत्र या प्रांत के लोग अपनी अपनी परम्पराओं का निर्वाहन करतेहैं । किसी भी प्रांत की संस्कृति उसके लोक मानस और लोकाचरण सेनिर्मित होती है ।लोक मानस लेकाचरण तत्काल परिस्थितियों से क्रियाप्रतिक्रिया करते हैं । लोकपरंपरा व लोकसंस्कृति गतिशील प्रक्रिया है ।लोक जीवन को संस्कारित उसकी मान्यताएँ करती हैं ।लोकाचार ,लोकधर्म ,लोक साहित्य ,लोक कला व लोक संगीत और लोकवाघ समन्वितरुप ही लोक संस्कृति व लोक परंपरा के अंतर्गत आते हैं।लोक साहित्यके अंतर्गत लोक गीत ,लोक गाथाएं ,लोक कलाएँ ,लोकमूर्तियाँ ,लोकसंगीत लोकोक्ति ,मुहावरें आदि आते हैं ।
लोक संस्कृति आंचलिक होते हुए भी इसमें अनेक संस्कृतियों का संगमहोता है। लोक परंपरा किसी क्षेत्र विशेष या वहाँ के जनजीवन कोप्रभावित करती है मनुष्य जीवन पर्यंत लोक परंपराओं का निर्वहन करताहै ।लोक परंपराओं में उसके इतिहास की झाँकी मिलती है औरउपयोगिता में भविष्य के संकेत ।वास्तव में किसी देश की संस्कृतिसभ्यता के आधार पर ही उस देश के संस्कारों का मापन होता है ।भारतीय भाषाओं ने यहाँ की संस्कृति सभ्यता ,परंपरा को बढ़ाया है ।
संस्कृति शब्द का अर्थ व्यापक है प्रसिद्ध मानव विज्ञानी मैलीनोव्स्की केअनुसार “ मानव जाति की समस्त सामाजिक विरासत या मानव कीसमस्त संचत सृष्टि का नाम ही संस्कृति है। इस कृत्रिम जगत को रचनेकी प्रक्रिया में संस्कृति के अंतर्गत विचार ,भावना ,मूल ,विश्वास, मान्यता,चेतना, भाषा, ज्ञान कर्म ,धर्म जैसे सभी अमूर्त तत्व शामिल हैंजबकि दूसरी ओर संस्कृति में विज्ञान और प्रौद्योगिकी एवं श्रम और उधमसे सृजित भोजन ,वस्त्र, आवास और भौतिक जीवन को सुविधाजनकबनाने वाली सभी मूर्त -अमूर्त स्वरूप शामिल हैं।” संस्कृति जीवन कीविधि है । व्यक्ति समाज में जिस प्रकार आचरण करता है उसके उठने,बैठने ,बोलने का ढंग ,पहनावा ,खानपान ,व्यवहार का तरीक़ा ये सारीबातें हमारी सभ्यता एवं संस्कृति से प्राप्त होती है ।व्यक्ति जन्म से लेकरमृत्यु तक इन्ही संस्कारों में जीता है।
भारतीय संस्कृति आज भी अपने परंपरागत अस्तित्व के साथ अडिग है।इसकी उदारता तथा समन्वयवादी गुण अन्य देशों की संस्कृति एवंसभ्यता को अपने अस्तित्व में समाहित कर अपने मूल को सुरक्षित रखा है।हमारे वेद ,पुराण , उपनिषद् आदि धर्मग्रंथ भारतीय संस्कृति कीप्राचीनता का वर्णन करते हैं ।रामायण में तो संस्कृति ,सभ्यता ,नैतिकताव आचरण की शुद्धता एवं समन्वय की विराट पराकाष्ठा देखने कोमिलती है।
अतः हम कह सकते हैं कि भारतीय संस्कृति का अतीत अत्यंत उज्ज्वलथा हम भविष्य को भूत से भी अधिक गौरवपूर्ण बनाने का प्रयास करें ।वैश्विक ऐतिहासिक परिदृश्य में भारतीय संस्कृति प्राचीन है।
हमारी संस्कृति में आध्यात्मिकता ,धर्म की श्रेष्ठता ,दार्शनिकता ,भिन्नतामें एकता ,समन्वयता एवं विश्वबंधुत्व की भावना आदि विविध आयामों सेदर्शित होती है। रामधारी सिंह दिनकर ने कहा है कि
“ संस्कृति मानव जीवन में उसी तरह व्याप्त है जिस प्रकार फूलों मेंसुगंध और दूध में मक्खन इसका निर्माण एक या दो दिन में नहीं होताबल्कि युग-युगान्तर में” ।
1-) साहित्य शिक्षा एवं संस्कृति (आचार्य नरेंद्र देव)
2-) भारत का सामाजिक एवं सांस्कृतिक इतिहास (डॉ० डी०सी० मिश्रा)
3-) प्राचीन भारत (एल०पी० शर्मा)
4-) मध्यकालीन भारतीय संस्कृति (आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव)
डॉ० ऋचा पटैरिया
असि ०प्रो० (हिन्दी विभाग )
गॉधी महाविद्यालय उरई जालौन
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